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Writer's pictureShaurya Saurabh

उस दिन के लिए - शौर्य



साहब अगर हम सिर्फ शरीर ही होते 

तो कबके संसार के जंगल में खो गए होते 

जीवन तो है ही उस दिन के लिए

जिस दिन खुद को खोकर हम सुकून से सोते


सिर्फ जीने के ही लिए जी रहे होते 

तो कबके मृत घोषित कर दिए गए होते 

संघर्ष और घर्षण के बिना निखार भी कैसा 

सिर्फ बेजुबान लाचारी का बोझ हम ढोते


जिस दिन होने के पीछे कोई तर्क नज़र नहीं आएगा

उस दिन हमारा शरीर भी मात्र मिट्टी बन जाएगा 

जिस दिन जीना सिर्फ उमर बढ़ाने का ज़रिया बन जाएगा 

मुझे बताओ फिर जीने का क्या स्वाद रह जाएगा


हुए है ताकि फिर कभी भी न होना पड़े 

हुए है ताकि हो सके अपने पैरों पर खड़े 

जीवन का फलसफा कट न जाए यू ही पड़े पड़े 

कही आत्मा अंत में कह न दें "मूर्ख हो यार तुम बड़े"

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